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Tuesday, September 16, 2014

आज तुम फिर मुस्करा रही हो...

कुछ सुना है हमने...

कुछ तो आज तुम गुनगुना रही हो,
धीमे से जो इन पलो को भी सुना रही हो.

कहलो हमसे भी तुम इतना क्यों रिझा रही हो,
मेरे साये से किन लम्हों को गिना रही हो.

फिर दिल में एक प्यारी सी धुन बना रही हो,
हम काबिल न तेरे फिर भी अपना बना रही हो.

हैरान-परेशान थी कल तुम हमसे...
वाह री जिंदगी आज तुम फिर मुस्करा रही हो.

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