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Saturday, September 13, 2014

पड़ने का शौक नहीं, हम बस लिखते है...

किसी ने पुछा हमसे की,
कैसे लिखते हो आप,

हमने भी हसकर कहा...

कुछ तोह हमारी उम्र
का तकाज़ा है,
और बाकी ज़िन्दगी की 
मुश्किलो का जनाजा है.

बड़ी मशकत से संभाली थी
अपनी कलम की नोक,
नहीं तो इन गमो की आग
कबका इसको गला देती,

छवि है कवि की तो कुछ 
लिख गए,
नहीं तो दुनिया कातिल
ही बना देती.

पड़ने का शौक न था कभी,
इसलिए बस हम लिखते है,
कभी हमको कम न समझो,
इन सितारों को देख लो
ज़मीन से येभी छोटे 
ही दिखते है.

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