चल अकेला चल अकेला, राही तू चल अकेला,
देख कैसे लगता है ये दुनिया का मेला,
लगाते सब अपना अपना पंडाल, और कहते,
आओ ले लो कुछ ख़ुशी, पर दे दो थोड़े से पैसे...
मोल लगाते सब बड़े चाव से,
जिसका जो बन जाए, फिर भी उसे कम लगता,
अपनी अमीरी और दूसरे की गरीबी,
हर कोई बस है रहता ठगता,
चल अकेला चल अकेला, राही तू चल अकेला,
देख कैसे लगता है ये दुनिया का मेला...
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